अपने संगीत प्रेम से डरते थे व्लादिमीर लेनिन

जवाहरलाल नेहरु कि लेखमाला :

आज रूसी क्रांति के लोकनायक व्लादिमीर लेनिन का 150वा जन्मदिन एक तरफ सारा विश्व पुँजीपतीयों के गिरफ्त आ चुकी हैं, तब समाजवादी विचारधारा का यह नायक याद आना लाजमी हैं सामान्य वर्ग, मजदूरों और किसानों के प्रति सहवेदना रखते हुए उसने सत्ता का लाभ उन तक पहुँचाया था

भारत क प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नें अपनी बहुचर्चीत किताब Glimpses of world history याने विश्व इतिहास कि झलक रूसी क्रांति और उसके नायक व्लादिमीर लेनिन के बारे में विस्तार से लिखा हैं डेक्कन क्वेस्ट के पाठको को हम उसका छोटासा टुकडा दे रहे हैं

गस्त 1918 में, लेनिन (Vladimir Lenin) की जान लेने की कोशिश की गई थी, उसे गहरी चोट लगी थी। इसपर भी लेनिन ने ज्यादा विश्राम नहीं लिया। वह बहुत जोरों के साथ काम कर रहा था और 1922 की मई में उसका स्वास्थ्य बिगड़ गया, जो अनिवार्य था। कुछ दिन आराम करने के बाद उसने फिर काम शुरू कर दिया, लेकिन ज्यादा दिनों तक काम नहीं कर सका।

1923 में उसका स्वास्थ्य पहले से भी ज्यादा राब हो गया और इस बीमारी से यह नहीं बच सका। 21 जनवरी 1924 को मास्को के नजदीक उसका प्राणान्त हो गया।

पढ़े : मार्क्स ने 1857 के विद्रोह कि तुलना फ्रान्सीसी क्रांति से की थीं

पढ़े : भगत सिंह ने असेम्बली में फेंके पर्चे में क्या लिखा था?

बहुत दिनों तक (अब तक) उसका शरीर मास्को में रखा रहा।  जाडे का मौसम था और रासायनिक पदार्थों से रीर को सुरक्षित रखा गया था। सारे रूस भर से और साइबेरिया के दूर-दरा मैदानों से जन-साधारण के प्रतिनिधि आते थे। किसान और मजदूर मर्द, औरत और बच्चे और अपने प्यारे कॉमरे याने साथी को, जिसने उन्हें गहरे गड्ढे से बाहर निकाला था और अधिक खुशहाल जिन्दगी की तरफ जाने का रास्ता दिखाया था, अंतिम सम्मान और आदर देकर चले जाते थे।

इन लोगों ने मास्को के सुंदर रेड स्क्वॉयर में एक सीधा-सादा और शृंगार-शून्य मकबरा उसके लिए बना दिया है और एक शीशे के क्से में उसका शरीर अभी तक रखा हु है। हर शाम को वहाँ पर लोगों का तांता लगा रहता है और लोग चुपचाप उसका दर्शन करके ले जाते हैं।

लेनिन को मरे हुए अभी इस 10 वर्ष (1933) भी नहीं हुए, फिर भी यह अपनी मातृभूमि रूस में ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में एक प्रबल सिद्धान्त बन गया है। ज्यों-ज्यों जमाना गुजरता है, लेनिन महत्तर बनता जाता है। यह संसार के अमर लोगों की टोली का एक सदस्य हो गया है।

पेट्रोग्रेड का नाम लेनिनग्रे हो गया रूस में करीब-करीब हर घर में लेनिन के लिए ए कोना मुर्रर है या लेनिन की तस्वीर है। लेकिन लेनिन जिन्दा है – तस्वीरों र यादगारों के रूप में नहीं, बल्कि उस विशाल कार्य के रूप में, जो उसने करके दिखा दिया। लेनिन जिन्दा है करोडों मजदूरों के हृदय में, और उसका उदाहरण उनको जिन्दगी में नई जान फूंकता है, जिसकी वजह से उन्हें बेहतर दिन देखने की आशा है।

यह न समझ लेना कि लेनिन कोई अमानुषी मशीन था जो अपने काम में लगा रहता था और किसी दूसरी बात का खयाल नहीं करता था। बेशक ह अपने काम में और अपने जीवन के उद्देश्य में बिलकुल तल्लीन था, फिर भी से अहंकार नहीं था। यह एक सिद्धान्त की मूर्ति था, फिर भी वह मनुष्य जैसा था, और सबसे बड़ा मानुषी गुण उसमें यह था कि वह दिल खोलकर हंस सकता था।

पढ़े : इब्ने खल्दून : राजनैतिक परिवार से उभरा समाजशास्त्री

पढ़े : विश्व के राजनीतिशास्त्र का आद्य पुरुष था अल फराबी

लॉक हार्ट मास्को में अंग्रेजों का एजेण्ट था और उस जमाने में, जबकि सोविय खतरे में थी, वह वहीं रहता था। उसने लिखा है कि, चाहे जो हो लेनिन हमेशा हंसमुख दिखाई देता था।

मुझे जितने सार्वजनिक नेताओं से कभी भी मिलने का मौका मिला है उन सबमें लेनिन का स्वभाव मुझे सबसे ज्यादा निर्लेप मालूम हुआ। वह अपनी बातचीत भीर अपने काम में सरस और स्पष्ट, लंबीचौडी बातों और दिखावे से नफरत करनेवाला था। वह संगीत का प्रेमी था – इतना प्रेमी कि अक्सर यह रा करता था कि संगीत प्रेम की वजह से कहीं उसके ऊपर बुरा असर न पड़ जाय और यह अपने काम-का में मुलायम न हो जाये

लेनिन के एक साथी ने, जिसका नाम लूना चार्स्की था और जो कई वर्षों तक बोल्शेविकों (Bolshevik) के शिक्षा विभाग का कमीसार याने मंत्री रह चुका था, लेनिन के बारे सोविय की विजय में एक दफा एक अजीब बात कही थी।

वह कहता था कि पूंजीपतियों के प्रति लेनिन का व्यवहार बिलकुल वैसा ही है जैसा हजरत ईसा का रुपया उधार देनेवालों के प्रति था, जिन्हें उसने मंदिर से निकाल दिया था। यह कहता था कि अगर हजरत ईसा आज जिन्दा होते तो बोल्शेवि होते। गैर मजहबी दमियों के लिए यह उपमा बडी आश्चर्यजनक है।

लेनिन ने एक बना स्त्रियों के बारे में कहा था कोई मुल्क आजाद नहीं हो सता, जबकि आधी आबादी रसोईघर में कैद रहे। एक दफा ह कुछ बच्चों को खिला रहा था, तब उसने एक बहुत अच्छी बात कही।

उसके पुराने दोस्त मैक्सिम गोर्की ने लिखा है कि इन लोगों की जिन्दगियां हम लोगों से ज्यादा नंमय होंगी। इन्हें उन सब बातों का अनुभव नहीं करना पडेगा, जिसको हम सह चुके हैं। इनकी जिन्दगी में इतनी निर्दयता नहीं पाई जायगी। निस्संदेह हम सबको ऐसी ही आशा करनी चाहिए।

पढ़े : इब्ने तुमरत वह अरब फ़िलोसॉफ़र जिसने खिलाफ़त में मचाई हलचले

पढ़े : इब्न बतूता : 75 हजार मील सफर करनेवाला अरब प्रवासी

मैं हाल के एक रूसी छन्द को देकर खत्म करूंगा। यह कोरस में गाने के लिए है। जिन लोगों ने इस संगीत को सुना है, ये कहते हैं कि इसमें जीवन और शक्ति भरी हुई है और यह गाना क्रांतिकारी जनता की भावना का प्रतिरूप है। इसके अंग्रेजी अनुवाद में भी इस भावना की कुछ पुट आजादी है। इस गाने का नाम अक्तूबर है, जिसका मतलब है नवम्बर सन् 17 की बोल्शेविक्रांति

उस जमाने में रूस का पंचांग असंशोधित था र पश्चिमी पंचांग से 13 दिन पीछे था। इस पंचांग के अनुसार मार्च सन् 17 की क्रांति फरवरी में हुई थी। इसलिए इसे फरवरी को क्रांति कहते है और इसी तरह बोल्शेविक क्रांति, जो नवम्बर सन् 17 की शुरुआत में हुई, अक्तूबर की क्रांति कहलाती है। रूस ने अपना पंचांग अब बदल दिया है और संशोधित पंचांग चलाया है। लेकिन ये पुराने नाम अभी तक जारी हैं।

अक्तूबर गीत का अंग्रेजी अनुवाद :

We went, asking for work and for bread,

Our hearts were oppressed with anguish,

The chimneys of the factories pointed toward the sky,

Like tired hands without strength to make a fist.

Louder than the common, the silence was broken by the words

Of our grief and our pain.

O Lenin! the desire of calloused hands.

We have understood, Lenin, we have understood that our lot is

A struggler Struggle I Struggle!

You led us to the last fight. Struggle!

You gave us the victory of labour.

And no one shall take away from us this victory over ignorance and oppression.

No one I No one I Never I Never!

Let everyone he young and brave in the struggle, because the

Name of our victory is October!

October! October!

October is a messenger from the sun.

October is the will of the revolting centuries!

October! It is a labour, it is a joy and song.

October! It is good fortune for the fields and machines!

Here is the banner name of the young generation and Lenin

पढ़े : वेदों और उपनिषदों का अभ्यासक था अल बेरुनी

पढ़े : हजार साल पहले अल् बेरुनी ने किया था जातिरचना का विरोध

भावार्थ

हम रोटी और काम की भीख मांगते ही जाते थे।

हमारे हृदय दुःख से पीड़ित और शिथिल थे।

अंगूठा दिखाने की ताकत से हीन हाथों की तरह

कारखानों की चिमनियाँ काश की तरफ इशारा कर रही थीं।

हमारे दुःख और दर्द के ब्दों से शांति, मामूली तरीके की बनिस्बत कहीं ज्यादा, भंग हो रही थी।

टूटे हुए हाथो की कांक्षा-सा लेनिन!

हमने समझ लिया है, लेनि, हमने समझ लिया है कि

हमें लड़ना, लड़ना और लड़ना है।

तुमने अंतिम लड़ाई तक हमें पहुंचाया।

तुमने हमें श्रमिकों की विजय दी और कोई अज्ञान और अत्याचार पर उस विजय को हमसे छीन नहीं सकता।

कोई नहीं! कोई नहीं! कभी नहीं! कभी नहीं!

लड़ाई में, संघर्ष में हरेक को युवा और बहादुर होने दो;

क्योंकि हमारी विजय का नाम अक्तू है।

अक्तूबर! अक्तूबर!

अक्तूबर सूर्य का संदेश – वाहक है।

अक्तूबर विद्रोही ताब्दियों का संकल्प है।

अक्तूबर! यह श्रम है, आनंद है, गान है।

अक्तूबर! यह खेतों और मशीनों का सौभाग्य है।

यह युवा पीढ़ी और लेनिन के नाम का झण्डा है।

जाते जाते  :  

Share on Facebook